अथ तन्त्राेक्त देविसूक्तम् .....या देवी सर्वभूतेषु...... (Devishuktam......ya devi sarba bhutesu....)
नमो देव्यै महादेव्यै
शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ।।
रौद्रायै नमो नित्यायै गौर्यै धात्र्यै नमो नमः ।
ज्योत्स्नायै चेन्दुरूपिण्यै सुखायै सततं नमः ॥१०॥
कल्याण्यै प्रणतां वृद्ध्यै सिद्ध्यै कुर्मो नमो नमः ।
नैर्ऋत्यै भूभृतां लक्ष्यै शर्वाण्यै ते नमो नमः ॥११॥
दुर्गायै दुर्गपारायै सारायै सर्वकारिण्यै
ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रायै सततं नमः ॥१२॥
अतिसौम्यातिरौद्रायै नतास्तस्यै नमो
नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै कृत्यै नमो नमः ॥१३॥
या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता ।।
नमस्तस्यै॥१४॥ नमस्तस्यै॥१५॥ नमस्तस्यै नमो नमः ॥१६॥
देवीलाइ नमस्कार छ, महादेवी शिवालाइ सर्वदा नमस्कारछ। प्रकृति एवं भद्रालाइ प्रणाम छ। हामि नियमपूर्वक जगदम्बालाइ नमस्कार गर्दछाैं। ॥ ९॥ रौद्रालाइ नमस्कार छ। नित्या, गौरी एवं धात्रीलाइ बारंबार नमस्कार छ।ज्योत्स्नामयी, चन्द्ररूपिणी एवं सुखस्वरूपा देवीलाइ सतत प्रणाम छ॥ १० ॥शरणागत लाइ कल्याण गरनेवाली वृद्धि एवं सिद्धिरूपा देवीलाइ हामि बारंबार नमस्कार गर्दछाैं। नैर्ऋती (राक्षसहरूका लक्ष्मी), राजाहरूका लक्ष्मी तथा शर्वाणी (शिवपत्नी) स्वरूपा तपाइं जगदम्बालाइ बार-बार नमस्कार ट ।। ११ ॥ दुर्गा, दुर्गपारा (दुर्गम संकटबाट पार गर्नेवाली), सारा (सबैकि सारभूता), सर्वकारिणी, ख्याति, कृष्णा र धूम्रादेवीलाइ सर्वदा नमस्कार छ।। ।।अत्यन्त सौम्य तथा अत्यन्त रौद्ररूपा देवीलाइ हामि नमस्कार गर्दछाैं, उनलाइ हाम्रे बारंबार प्रणाम छ। जगतकी आधारभूता कृति देवीलाइ बारंबार नमस्कार छ।। १३ ।। जो देवी सबै प्राणिमा विष्णुमायाकाे नामबाट कहीन्छिन्, उनलाइ नमस्कार, उनलाइ नमस्कार, उनलाइ बारंबार नमस्कार छ॥१४-१६।।
या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते।
नमस्तस्यै॥१७॥ नमस्तस्यै॥१८॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥१९॥
देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै॥२०॥ नमस्तस्यै॥२१॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥२२॥
देवी सर्वभूतेषु निद्रारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै॥२३॥ नमस्तस्यै॥२४॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥२५॥
देवी सर्वभूतेषु क्षुधारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै॥२६॥ नमस्तस्यै॥२७॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥२८॥
देवी सर्वभूतेषुच्छायारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै॥२९॥ नमस्तस्यै॥३०॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥३१॥
देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै॥३२॥ नमस्तस्यै॥३३॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥३४॥
देवी सर्वभूतेषु तृष्णारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै॥३५॥ नमस्तस्यै॥३६॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥३७॥
जो देवी सबै प्राणिहरूमा चेतना कहिनुहुन्छ, उनलाइ नमस्कार, उनलाइ नमस्कार,उनलाइ बारंबार नमस्कार छ॥ १७–१९ ॥ जो देवी सबै प्राणिहरूमा बुद्धिरूपमा स्थित हुनुहुन्छ, उनलाइ नमस्कार, उनलाइ नमस्कार, उनलाइ बारंबार नमस्कार छ॥ २०-२२ ॥ जो देवी सबै प्राणिहरूमा निद्रारूपमा स्थित हुनुहुन्छ, उनलाइ नमस्कार, उनलाइ नमस्कार, उनलाइ बारंबार नमस्कार छ॥ २३-२५॥ जो देवी सबै प्राणिहरूमा क्षुधा रूपमा स्थित हुनुहुन्छ, उनलाइ नमस्कार, उनलाइ नमस्कार, उनलाइ बारंबार नमस्कार छ॥ २६-२८॥जो देवी सबै प्राणिहरूमा छाया रूपमा स्थित हुनुहुन्छ, उनलाइ नमस्कार, उनलाइ नमस्कार, उनलाइ बारंबार नमस्कार छ ॥ २९–३१॥ जो देवी सबै प्राणिहरूमा शक्ति रूपमा स्थित हुनुहुन्छ, उनलाइ नमस्कार, उनलाइ नमस्कार, उनलाइ बारंबार नमस्कार छ ॥ ३२-३४ ॥ जो देवी सबै प्राणिहरूमा तृष्णा रूपमा स्थित हुनुहुन्छ, उनलाइ नमस्कार, उनलाइ नमस्कार, उनलाइ बारंबार नमस्कार छ।।
या देवी सर्वभूतेषु क्षान्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै॥३८॥ नमस्तस्यै॥३९॥ नमस्तस्यै नमो नमः।।४०
देवी सर्वभूतेषु जातिरूपेण
नमस्तस्यै॥४१॥ नमस्तस्यै॥४२॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥४३
देवी सर्वभूतेषु लज्जारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै॥४४॥ नमस्तस्यै॥४५॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥४६
देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै॥४७॥ नमस्तस्यै॥४८॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥४९
देवी सर्वभूतेषु श्रद्धारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै॥५०॥ नमस्तस्यै॥५१॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥५२॥
देवी सर्वभूतेषु कान्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै॥५३॥ नमस्तस्यै॥५४॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥५५॥
देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै॥५६॥ नमस्तस्यै॥५७॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥५८।
नमस्तस्यै॥५९॥ नमस्तस्यै॥६०॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥६१॥
या देवी सर्वभूतेषु स्मृतिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै॥६२॥ नमस्तस्यै॥६३॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥६४॥
देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै॥६५॥ नमस्तस्यै॥६६॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥६७॥
देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै॥६८॥ नमस्तस्यै॥६९॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥७०॥
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै॥७१॥ नमस्तस्यै॥७२॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥७३॥
देवी सर्वभूतेषु
भ्रान्तिरूपेण भ्रान्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै॥७४॥ नमस्तस्यै॥७५॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥७६॥
इन्द्रियाणामधिष्ठात्री भूतानां चाखिलेषु या।
भूतेषु सततं तस्यै व्याप्तिदेव्यै नमो नमः॥७७॥
चितिरूपेण या कृत्स्नमेतद् व्याप्य स्थिता जगत।
नमस्तस्यै ॥७८॥ नमस्तस्यै॥७९॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥८०॥
तथा सुरेन्द्रेण दिनेषु सेविता।
करोतु सा नः शुभहेतुरीश्वरी
शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः ॥ ८१ ॥
या साम्प्रतं चोद्धतदैत्यतापितै-
रस्माभिरीशा सुरैर्नमस्यते।
या च स्मृता तत्क्षणमेव हन्ति नः
सर्वापदो भक्तिविनम्रमूर्तिभिः ॥ ८२॥
पूर्वकालमा अफ्ने अभीष्ट प्राप्ति गर्न देवताले जसकाे स्तुति गरे तथा देवराज इन्द्रले लामाे समयसम्म जसकाे अराधना गरे उनि कल्याणकाे साधनभूता ईश्वरी हाम्राे मङ्गल गरून् तथा सबै आपत्तिहरूकाे नाश गरून् ॥ ८१ ॥ उद्दण्ड दैत्यहरूबाट सताइएका हामि सबै देवता जुन परमेश्वरीलाइ यस समय नमस्कार गर्दैछाैं तथा जो भक्तिमा विनम्र पुरुषद्वारा स्मरण गरेपछि तत्काल नै सम्पूर्ण विपत्तिहरूका नाश गर्नुहुनुहुन्छ, उनि जगदम्बा हाम्राे सबै संकट हटाइदिउन् ।। ८२॥
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